जब इंसान के धर्म-कर्म के रास्ते भी भटक कर अधर्म के मार्ग पर आ जाते हैं तो उसका सारा दोष कलयुग पर मढ़ दिया जाता है. ऐसे में क्या कभी सोचा है कि आखिर यह कलयुग है कौन?
जितना अत्याचार पिछले तीन युगों में नहीं हुआ, उससे कई गुना कलयुग में हो रहा है. आखिर क्यों अब कोई राम या कृष्ण धरती को बचाने नहीं आ रहे हैं? क्यों हर इंसान के भीतर रावण और कंस जगह बना रहे हैं?